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________________ जयमाला (पंचमंगल की चाल) भो भवि दर्शविशुद्धि भावना जानिये, दोष पचीस आदि नहिं तामें मानिये। सब गुनमें यह भावन पावन सार है, सकल गुणन की खान मान भवतार है।। तारे जु भवदधि नाव जैसे, करम संकट टारनी। दे मोक्षथानक पूज्य त्रिभुवन, काम वांछित सारनी।। याकी जु महिमा कहे कवि किम, पार गुण ताके नहीं। गम्य ज्ञानी सकल जाने, और की मुखतें कही।। ये शुभभावन जिनपद-दायक जानिये, मोक्षवृक्ष को बीज मिथ्यातम हानिये। याही के परभाव समवसृति थाय है, होत कल्याणक पाँच सांच शिव पाय है।। पाय पंचकल्याण शिव ले, फेर जग नहिं आय है। तन छांड जड़ चिद्रूप निवसै, ज्ञान केवल पाय है।। यह सकल महिमा जान याकी, भले फलकी दाय है। तातें जु सेय विशुद्ध दर्शन, भक्ति उर बहु लाय है।। अब यह दर्शविशुद्धी निरमल भावना, भाये वांछित मन फल नीका पावना। षोडशकारण मांही कारण सार है, याहीं ते सब धर्म महा फलकार है || फलकार या बिन धर्म नांहीं, करे विरथा जायजी । बहुदान तप तन कष्ट संयम, नाँहि शिवफल दायजी॥ तातें जु शिवमग लोभिया जे, सुरति भाषित सो करो। ये भावना शुभ काय मन बच, आपने हिरदें धरो।। मैं भी सफल आप भव तबही मानिहों, दरशविशुद्धी भावन उर में आनिहों। या भावन भाये बिन भववन में फिरयो, मानि मानि निज ठाँम शीशपै अघ धरयो । धारयो जु सिरपै पाप समझे, बिना दुख तातें लये। 850
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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