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________________ जो ज्ञान विनय का रूप और, अध्ययन रीति पथ दरशावै। व्यवहार धर्म परिपालन में, कर्त्तव्यबोध महिमा गावै ।। सूत्रों के माध्यम से स्व समय, पर समय बोध देने वाला। नित पढ़े, पढ़ावें उपाध्याय मुनि, सूत्र कृतांग शास्त्रमाला॥ पद छत्तीस हजार से सूत्रकृतांग समृद्ध मुनिगण नित इसको पढ़ें, धारें ज्ञान विशुद्ध||2|| ऊँ ह्रीं सूत्रकृतांग जिनागम पठन पाठन गुण भूषिताय उपाध्याय परमेष्ठिने नमः अर्घं निर्वपामीति स्वाहा। द्रव्यों के एक अधिक विकल्प, या भेदों का वर्णन कर्ता । समझो विकल्प भेद स्थानों में, द्रव्य स्थिति दर्शन कर्ता ।। एक स्थानी, एक जीव द्रव्य संसारी मुक्त द्विविध रहता। गति चार भेद से चतुथानी, षट द्रव्य तथैव कथन कर्ता।। पद ब्यालीस हजार से, हो समृद्ध यह अंग । भेद ज्ञान श्रद्धान से, हो मिथ्यामति भंग॥3॥ ऊँ ह्रीं स्थानांग जिनागम पठन पाठन गुण भूषिताय उपाध्याय परमेष्ठिने नमः अर्घं निर्वपामीति स्वाहा। जीवादि द्रव्य सब द्रव्य क्षेत्र, अरु काल भाव सापेक्ष रहे। गुण में समानता की विधि से, समवाय एकता रूप धरें।। ज्यों, धर्म अधर्माकाश और इकजीव, प्रदेशों की समता । यह तत्व निरूपण करता समवायांग, ज्ञान निधि का भरता ।। इक लाख चौसठ सहस पद, समृद्ध यह अंग। द्रव्यों में गुण सदृशता, दरशायक यह अंग॥4॥ 789
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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