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________________ भव में भटका चिरकाल, शान्ति कहीं न मिली। प्रभु पूजत हुआ निहाल, चन्दन सुरभि खिली॥ परमेष्ठी पांच महान, शिव मंगलकारी। जिन पूजन पाप पलायं, पुन्य बढ़े भारी॥2॥ ऊँ ह्रीं अरहंत सिद्धाचार्योपाध्याय साधुभ्यो नमः चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। प्रभु शुद्धातम गुण खान, अक्षय पद दाता । पूजूं अक्षत ले आन, कष्ट हरो त्राता।। परमेष्ठी पांच महान, शिव मंगलकारी। जिन पूजन पाप पलायं, पुन्य बढ़े भारी॥3॥ ऊँ ह्रीं अरहंत सिद्धाचार्योपाध्याय साधुभ्यो नमः अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। ये पुष्प सरल अभिराम, चरणों में अर्पित । निश्छल, स्वरूप निष्काम, होवे मेरा चित।। परमेष्ठी पांच महान, शिव मंगलकारी। जिन पूजन पाप पलायं, पुन्य बढ़े भारी॥4॥ ऊँ ह्रीं अरहंत सिद्धाचार्योपाध्याय साधुभ्यो नमः पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। भोजन से भूख पलाय तृष्णा नहिं टूटे। पूजूं नैवेद्य बनाय, मोह व्यथा छूटे ।। परमेष्ठी पांच महान, शिव मंगलकारी। जिन पूजन पाप पलायं, पुन्य बढ़े भारी॥5॥ ऊँ ह्रीं अरहंत सिद्धाचार्योपाध्याय साधुभ्यो नमः नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। दीपक ले मन हरषाय, अर्पित है प्रभुवर। मम ज्ञानज्योति जग जाय, छूटे अन्ध तिमिर।। परमेष्ठी पांच महान, शिव मंगलकारी। जिन पूजन पाप पलायं, पुन्य बढ़े भारी॥6॥ ऊँ ह्रीं अरहंत सिद्धाचार्योपाध्याय साधुभ्यो नमः दीपं निर्वपामीति स्वाहा। अर्पित करता यह धूप, गंध महक वाली। रत्नत्रय सुरभि अनूप, निधि हमने पाली। परमेष्ठी पांच महान, शिव मंगलकारी। जिन पूजन पाप पलायं, पुन्य बढ़े भारी॥7॥ ऊँ ह्रीं अरहंत सिद्धाचार्योपाध्याय साधुभ्यो नमः धूपं निर्वपामीति स्वाहा। 765
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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