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________________ निजपरिवार सहित मारुत के, इन्द्र जिनालय आवें। शांति प्रभु के पद-पंकज की, पूजा नित्य रचावें।।6।। ओं ह्रीं श्री वातकुमारेन्द्रेण स्वपरिवारसहितेन पादपद्मार्चिताय जिननाथाय तथैव वरप्रदाय श्री शान्तिनाथाय अयम निर्वपामीति स्वाहा। निजपरिवार सहित स्तनितों के, इन्द्र जिनालय आवें। शांति प्रभु के पद-पंकज की, पूजा नित्य रचावें।।7। ओं ह्रीं श्री स्तनितकुमारेन्द्रेण स्वपरिवारसहितेन पादपद्मार्चिताय जिननाथाय तथैव वरप्रदाय श्री शान्तिनाथाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। निजपरिवार सहित सागर के, इन्द्र जिनालय आवें। शांति प्रभु के पद-पंकज की, पूजा नित्य रचावें।।8। ओं ह्रीं श्री उदधिकुमारेन्द्रेण स्वपरिवारसहितेन पादपद्मार्चिताय जिननाथाय तथैव वरप्रदाय श्री शान्तिनाथाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। निजपरिवार सहित द्वीपों के, इन्द्र जिनालय आवें। शांति प्रभु के पद-पंकज की, पूजा नित्य रचावें।।9। ओं ह्रीं श्री द्वीपकुमारेन्द्रेण स्वपरिवारसहितेन पादपद्मार्चिताय जिननाथाय तथैव वरप्रदाय श्री शान्तिनाथाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। शांति प्रभु के पद-पंकज की, पूजा नित्य रचावें।।10। ओं ह्रीं श्री दिक्कुमारेन्द्रेण स्वपरिवारसहितेन पादपद्मार्चिताय जिननाथाय तथैव वरप्रदाय श्री शान्तिनाथाय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 74
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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