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________________ लो-बीजाक्षर विश्व ऋद्धि दे, शांति कांति साम्राज्य बढ़ा दे । स्वर्ग मोक्ष दे खुशी खुशी से, इसको पूजूं बड़ी खुशी से ऊँ ह्रीं “लो’” बीजाक्षराय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा॥92॥ गु-सहित-उ बीज धर्म जप है, लोकांतिक देवों का तप। तत्वार्थ दान करूं मैं नित्य, पूरे जाने भोग अनित्य।। ऊँ ह्रीं “गु” बीजाक्षराय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।93।।। त्त-बीजाक्षर गणधर गावें, जाप करे शिवपुर को जावे। सिंह आदि की भीत नशावे, पूजूं इसको मन से ध्यावें।। ॐ ह्रीं "त" बीजाक्षराय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा॥94॥ मा- बीजाक्षर भव्य रूप है, भव तरन को नौका रूप है। आग्रह अंधकार का हारी, पूजूं इसको यह अघहारी।। ऊँ ह्रीं “मा” बीजाक्षराय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा॥95॥ साहू लोगुत्तमा सा-बीजक्षर धन्य है, पाप बीज हर मान । दुर्व्याधि रागाग्नि को, शमन करे यह ज्ञान।। ॐ ह्रीं "सा” बीजाक्षराय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा॥96॥ 4 प्राणनाथ हू बीज है, रक्षा करे सुधर्म । पूर्वधरों का ध्येय है, देता है यह शर्म ।। 6 ऊँ ह्रीं “हू” बीजाक्षराय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥ 97॥ 721
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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