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________________ क्षण गुणस्थान मांहि जिन, शुक्ल ध्यान प्रगटाई । शब्द शब्दांतर अर्थ अर्थान्तर, योग योगान्तर ध्याई || तास वरण चित पतित मुहुर्मुहु भाव शुकल सुखदाई। जजूं पृथत्ववितर्कविचार जु, जिन उपभोग सु ध्याई॥ ऊँ ह्रीं क्षपकश्रेणी गुणस्थाने शब्दात् शब्दान्तरं अर्थात् अर्थान्तरं योगात् योगान्तरं यत् वर्णचिंतवनमिदृशं पृथक्त्ववितर्क वीचार शुक्ल ध्यानसापेक्षम् उपभोगलब्धि प्राप्ताय अर्घं निर्वपामीति स्वाहा॥16॥ क्षीण मोह गुणस्थान मांहि जिन, वर्णादिक के त्यक्ता। एक एव वरण जो ध्यावत, भाव मुहुर्मुहु चिंत्वा ॥ सो एकत्ववितर्क वीचर जु, ध्याय शुलल भव हानो। धारन केवल ज्ञान जिनेश्वर सो उपभोग बखानो।। ॐ ह्रीं क्षीणमोहगुणस्थाने एक एव वर्ण मात्र विचार मुहुर्मुहु चिंतन नाम क्षायिक उपभोगलब्धि प्राप्ताय अर्घं निर्वपामीति स्वाहा॥7॥ सहित योग गुणस्थान संयोगी, सूक्ष्मी भूत शरीरम्। तस्या हलन चलनादि क्रियाणां, अप्रतिपातरहीरम्। यत् निर्वाशन तस्य स्वरूपं शुद्धात लवलाई। सूक्ष्म क्रियाप्रति पातध्यान जिन जजोपभोग लहाई।। ऊँ ह्रीं सयोग गुणस्थाने सूक्ष्मी भूत शरीरस्य हलन चलनादि क्रियाणाम् अप्रतिपात स्वरूप सूक्ष्म क्रिया पति शुक्ल ध्यान सहित उपभोगलब्धि प्राप्ताय अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।।8।। योगरहित गुणस्थान अयोग जु तहं सब योग नशाई। समुद्-घात किरिया करने थित, लघु पन अक्षर थाई।। ध्यान जो व्युपरत क्रिया निवृत्ति, सो जिन आतमध्याई । 671
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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