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________________ प्रत्येक अर्घ (छंद-चौपाई) सप्त व्यसन मिथ्यात्व महान, ये ही महापाप की खान। इनको निराकरण उपदेश, दान लब्धि धर जजों जिनेश।। ॐ ह्रीं मिथ्यात्वादिसप्तव्यसन निराकरण उपदेश दानलब्धिधारकाय भगवत्-जिनेन्द्राय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥1॥ धर्म विर्षे सम्मुख करतार, दे उपदेश भये भवपार। ऐसी दान ऋद्धि धर देव, अर्घ चढ़ाय जजू शुभ भेव।। ऊँ ह्रीं धर्मसम्मुखीकरण उपदेशकजिनेन्द्राय दानलब्धिधारकाय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥2॥ पंच अणुव्रत हैं सुख खान, सो उपदेशक शक्ति महान। अणुव्रत उपदेशन गुण धार, जजों दानऋषि भेद विचार।। ॐ ह्रीं अणुव्रतोपदेशधारकाय दानलब्धिप्राप्ताय जिनेन्द्राय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।।3। महाव्रत पंच तणों उपदेश, दान ऋद्धि को भेद विशेष। मुनिव्रत उपदेशन जिनराय, जजों चरण द्वय अर्घ चढ़ाय। ऊँ ह्रीं महाव्रत उपदेशधारकाय दानलब्धिप्राप्ताय जिनेन्द्राय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥4॥ यथाख्यात चारित्र प्रधान, ताको ही उपदेश महान्। धरत दान ऋधिको यह भेद, सो जिन जजों हरो भव खेद।। ऊँ ह्रीं यथाख्यात चारित्रोपदेशधारकाय दानलब्धिप्राप्ताय जिनेन्द्राय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।।5।। 658
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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