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________________ ताको नाम लेत दुख जाई, सांचा धरम शील है भाई।। शीत सती सीता ने धारै, अग्निकुण्ड शीतल करि डारौ। शील प्रभाव जगत पुजवाई, सांचा धर्म शील है भाई।। शील सती द्रोपदि ने धारौ, ता फल कीचक भीम विदारौ । भूप हरी पूछै आई, सांचा धरम शील है भाई।। शील सती नीली मन आनौ, सुरनर पूज भई जग जानौ। दोष सकल जातैं नशि जाई, सांचा धर्म शील है भाई || शील गुणवती कन्या लीनों, ताको देव सहाय जु कीनों। शील विरततैं सुरगति पाई, सांचा धर्म शील है भाई।। शील सती सोमा ने धारा, ताफल सर्प भयो मणि- हारा। जग जस ले सुरलोक सिधाई, सांचा धर्म शील है भाई।। सेठ सुदर्शन यह व्रत कीनो, पुण्य प्रताप सुयश जग लीनो। शील सुरेन्द्र सिद्ध पद दाई, सांचा धर्म शील है भाई || ऊँ ह्रीं उत्तमब्रह्मचर्यधर्मांगायायं निर्वपामीति स्वाहा। समुच्चय जयमाला धरम जगत में सार, उत्तम क्षमा जु आदि दे । भवदधि तारनहार, नमों धरम दशलक्षिणी।। क्षमा धरम सब जग में आला, निज परिणति को है रखवाला। क्षमा रतन गुण रतन भंडारी, मोकूं भवसागर तैं तारो ।। मार्दव धरम सकल गुण वृन्दा, मान विहडन शिवसुख कंदा। मार्दव गुणतै विनय प्रसारे, मोकूं भवसागर तैं तारो।। आर्जवरीति सकल सुखदानी, सरल स्वभाव कुटिलता हानी । आर्जव शिवपुर पंथ सहारों, मोकूं भवसागर तैं तारो।। सत्य धरम सम सार न कोई, सत्य धरम निज भाषित होई। 652
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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