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________________ काम वाण उच्चाट कराव रहै, उदास कछू न सुहावै। उच्चाटन शर काम न होवै, ब्रह्मचर्य जजि सब अघ खोवै ।। ऊँ ह्रीं श्री उच्चाटनकामबाणवर्जनोत्तम-ब्रह्मचर्य-धर्मांगाय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा॥13॥ कामीजन को काम सतावै, ता वश ताहि न कछू सुहावै। वशीकरण शर बाण न होवै, ब्रह्मचर्य जजि सब अघ खोवै ॥ ॐ ह्रीं श्री वशीकरणकामबाणवर्जनोत्तम ब्रह्मचर्य धर्मांगाय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।14। कामदेवतै गहल जुहोई, सुधिबुधि ताहि रहै नहिं कोई। सो मोहन शर काम न होवै, ब्रह्मचर्य जजि सब अघ खोवै ॥ ॐ ह्रीं श्री मोहनकामबाणवर्जनोत्तम ब्रह्मचर्य-धर्मांगाय अयं निर्वपामीति स्वाहा॥15॥ लौका, सबतै बडौ माह रिपु जी का जहँ ये पांच वाण नहिं होवै, ब्रह्मचर्य जजि सब अघ खोवै।। ऊँ ह्रीं श्री पंचप्रकारकामबाणवर्जनोत्तम-ब्रह्मचर्य-धर्मांगाय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।16। रूप तियाको लखिमुलकावै वृथा पाप शिर माहिं चढ़ावै। ये शर ताके मांहि न होवैं, ब्रह्मचर्य जजि सब अघ खोवै ।। ऊँ ह्रीं श्री मुलकनकामबाणवर्जनोत्तम-ब्रह्मचर्य-धर्मांगाय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा॥17॥ बार बार तिय देखन चाहै, जाके उर अवलोकन दाहै। जाके उर यह सर नहिं होवै, ब्रह्मचर्य जजि सब अघ खोवै ॥ ॐ ह्रीं श्री अवलोकनकामबाणवर्जनोत्तम ब्रह्मचर्य धर्मांगाय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।18।। 650
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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