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________________ फूलपात तरू तोड़े नाहिं, वन बागादि लगाये नाहिं। हरितकाय जिय रक्षा होय, संयम धर्म जजौं मद खोय।। ऊँ ह्रीं वनस्पतिकायिकजीवरक्षणरूपसंयम धर्मांगाय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।5।। इल्लो जोंक गिंडोला जान, बाला आदि जीव पहिचान। वे-इन्द्रिय जिय रक्षा होय, संयम धर्म जजौं मद खोय।। ॐ ह्रीं द्वीन्द्रियजीवरक्षणरूपसंयम धर्मांगाय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||6|| चीटी कुंथला खटमल लोक, जुआ तिबूला जिय करि ठीक। ते-इन्द्रिय जिय रक्षा होय, संयम धर्म जजौं मद खोय।। ॐ ह्रीं त्रीन्द्रियजीवरक्षणरूपसंयम धर्मांगाय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा॥ 7॥ मक्खी भवरा टीडी जान मच्छर आदि जीव पहिचान । चउ-इन्द्रिय जिय रक्षा होय, संयम धर्म जजौं मद खोय।। ॐ ह्रीं चतुरिन्द्रयजीवरक्षणरूपसंयम धर्मांगाय अयं निर्वपामीति स्वाहा॥8॥ जीव असैनी बहुत प्रकार, जलचर सर्प आदि नर धार। पंचेन्द्रिय जिय रक्षा होय, संयम धर्म जजौं मद खोय।। ॐ ह्रीं स्पर्शनेन्द्रियविषयवर्जनरूपसंयम धर्मांगाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥9॥ नरसुर नारिक सब जिय संज्ञि, तिर्यक्गति में संज्ञि असंज्ञि। संज्ञी जिय की रक्षा होय, संयम धर्म जजौं मद खोय।। ऊँ ह्रीं संज्ञीपंचेन्द्रियजीवरक्षणरूपसंयम धर्मांगाय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा॥10॥ 623
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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