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________________ चन्दन शीतल भावन भाया, तापर मन भाँवरा जुलुभाया। जग आताप तासु नशि जावै, सो संयम वृष जजि शिर नावै।। ऊँ ह्रीं श्री उत्तमसंयमधर्मांगाय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। शालि अखंड अखत ले भाई, शुभ परणति भजान भरवाई। जो अखंड थानक ले धावै, सो संयम वृष जजि शिर नावै।। ऊँ ह्रीं श्री उत्तमसंयमधर्मांगाय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। फूल प्रफुलित भाव सु लीजै, भक्ति तार में माल करीजै। मदन-वाण-हरि सो बलपावै, सो संयम वृष जजि शिर नावै।। ॐ ह्रीं श्री उत्तमसंयमधर्मांगाय कामबाणविध्वंशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। भाव अवांछित कर नैवेद्यं, नाना रस मय ले निरखेद्य। भूख नाशि चित साता पावै, सो संयम वृष जजि शिर नावै।। ऊँ ह्रीं श्री उत्तमसंयमधर्मांगाय क्षुधारोगविनाश्नाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। सम्यग्ज्ञान दीप करि भाई, शुद्ध भाव भाजन घरबाई। ताके फल ज्ञान मिटावै, सो संयम वृष जजि शिर नावै।। ऊँ ह्रीं श्री उत्तमसंयमधर्मांगाय मोहान्धकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। कर्म आठ मय धूप करीजै, धरम सु ध्यान अगनि खेवीजै। ताफल दुष्ट कर्म नाशि जावै, सो संयम वृष जजि शिर नावै।। ऊँ ह्रीं श्री उत्तमसंयमधर्मांगाय दुष्टाष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। 621
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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