SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 615
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उत्तम शौच धर्म पूजा (बेसरी छन्द) शौच धर्म पर चाह निवारै, तनतें हूं ममता निरवारै। जग वांछा तजि निर्मल भावा, शौच धर्म पूजों कर चावा।। ऊँ ह्रीं श्री उत्तमशौचधर्मांग अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्। ___ऊँ ह्रीं श्री उत्तमशौचधर्मांग अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ऊँ ह्रीं श्री उत्तमशौचधर्मांग अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्। अथाष्टकम् (पद्धरि छन्द) जल क्षीरसमुद्र को सुभग लाय, धरि कनकपात्र में भक्तिभाय। तन धरन मिटै वह फल सुजान, मैं शौच धर्म जजि हर्ष आन।। ऊँ ह्रीं श्री उत्तमशौचधर्मांगाय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। घसि बावन चंदन नीर आन, अलि गुजत मानों करत गान। घरि कनकपियाले भक्ति जान, मैं शौच धर्म जजि हर्ष आन।। ऊँ ह्रीं श्री उत्तमशौचधर्मांगाय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। उज्ज्वलअखंड शुभ गंध दाय, अक्षतअनूप लखि शशिलजाय। कनकपात्र विर्षे धरि भक्ति आन, मैं शौच धर्म जजि हर्ष आन।। ऊँ ह्रीं श्री उत्तमशौचधर्मांगाय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। ले फूल कल्पद्रुम के मनोग, आसक्त भ्रमर थित करत भोग। तिन गुंधि माल उर भक्ति ठान, मैं शौच धर्म जजि हर्ष आन।। ऊँ ह्रीं श्री उत्तमशौचधर्मांगाय कामबाणविध्वंशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। 615
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy