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________________ अर्थाष्टकं (बेसरी छन्द) क्षीर समुद्रका उज्ज्वल नीरा, कनक पियाले घर अति घीरा। जरा रोग नाशनको भाई, आरजव भाव नमों शिरनाई।। ऊँ ह्रीं श्रीआर्जवधर्मांगाय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। चंदन बावन जल घसि लाया, कनक पात्र में धरि उमगाया। शोकानल तप नाशन भाई, आरजव धरम जजौं शिरनाई।। ऊँ ह्रीं श्रीआर्जवधर्मांगाय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। अक्षत मुक्ताफल से जानो, उज्जवल खंड विवर्जित आनो। क्षय नहि होय इसीपद दाई, आरजव भाव नमों शिरनाई।। ऊँ ह्रीं श्रीआर्जवधर्मांगाय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतानं निर्वपामीति स्वाहा। फूल सुगंध कल्पद्रुम लाया, तथा सुवर्ण रजतमय भाया। तिनकी माला गुंथिकर लाय, आरजव भाव नमों शिरनाई।। ॐ ह्रीं श्रीआर्जवधर्मांगाय कामबाणविध्वंशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। नाना रस नैवेद्य करावै, मोदक आदि भक्तितै लावै। भूख व्याधि नाशनको भाई, आरजव भाव नमों शिरनाई।। ऊँ ह्रीं श्रीआर्जवधर्मांगाय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। दीपक रतन थालि धरि लीजै मनवचकाय शुद्ध करी लीजै। ___ घाति अज्ञान ज्ञान दरशाई, आरजव धरम जजै शिरनाई।। ऊँ ह्रीं श्रीआर्जवधर्मांगाय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। 603
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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