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________________ मार्दव धरम सुरग सुख केरा, उपद्रव नाशि हरै भव फेरा। मार्दव उत्तम पुरुष सु धारै, ताफल आप तिरै आनि तारे।। मार्दव मोक्षमार्ग को दाता, मार्दव धर्म सकल जग त्राता। मार्दव वृष गुणवन्ता धारै ताफल आप तिरै अनि तारै।। मार्दव धरम कल्पतरुभाई, मार्दव मनवांछित फलदाई। मार्दव धरम मुकुट जो धारै, ताफल आप तिरै अनि तारे।। मार्दव धरम कनक में मीना, मार्दव धारि सकै न कमीना। मान मार मार्दव वृष धारे, ताफल आप तिरै अनि तारे।। मार्दव वृष सब धर्म प्रधाना, मार्दव मोह मल्लको हाना। मार्दव माल पुरुष उरधारे, ताफल आप तिरै अनि तारै।। (दोहा) मान मार मार्दव करै, हरै पाप मल सोय। जगत छुड़ावै शिव करै, ते भारक्षक होय।। ऊँ ह्रीं श्री उत्तम मार्दवधर्मांगाय अयं निर्वपामीति स्वाहा। उत्तम आर्जव धर्म पूजा (बेसरी छन्द) जग परपंच रहित जो भावा, सरल चित्त सबतै निरदावा। तिनको आर्जव भावसु कहियें, सो ह्यां थापि पूजफल लहिये।। ऊँ ह्रीं उत्तमआर्जवधर्म अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्। ऊँ ह्रीं उत्तमआर्जवधर्म अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ऊँ ह्रीं उत्तमआर्जवधर्म अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्। 602
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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