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________________ तिनके चरन कमल कूँ पूर्जे अष्ट द्रव्य को धारि अर्घ कर।।3।। ॐ ह्रीं वचनबलरिद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्यः अर्घम् निर्वपामीति स्वाहा। एकबरस का उतसग धारै अचल अंग चल आसन नाहीं। तीनलोक चढ़ी अंगुली तें ऊँच नीच बल तैं जु करांही।। गर्व करें नहीं ऐसे बल को वही मुनीश्वर शिव पद दाई। काय बली यह रिद्धिधरी रिषि तिन्हें पूजि हम सीस नवाई।।4।। ऊँ ह्रीं कायबलरिद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्यः अर्घम् निर्वपामीति स्वाहा। (सोरठा) ऐसी बल रिधिधार, जे मुनि ढाई द्वीप में। तिनकी पूजन सार, करि हूँ अर्घ चढ़ाय के।।5।। ऊँ ह्रीं बलरिद्धिधारक सर्वमुनीश्वरेभ्यः अर्घम् निर्वपामीति स्वाहा। जयमाला (सोरठा) गुण को नाँही पार, बलरिधि धारी मुनिन को। पढूँ अबै जयमाल, भक्ति थकी वाचाल है।।1।। (ढाल- हमारी करुण ल्वो जिनराय) बलरिधि धर मुनिराज के, चरन कमल सुखदाय। बार-बार विनती करूँ मन वच सीस नवाय।। हमारी करुणा ल्यो रिषिराय।।2।। थावर जंगम जीव के, रक्षक है मुनिराय। मोहिकर्म दुख देत हैं, इनतें क्यों न छुराया। हमारी करुणा ल्यो रिषिराय।।3।। राजरिद्धितजि वन गये, धर्यो ध्यान चिद्रूप। रिद्धि आय चरना लगी, नमन करत सब भूप।। हमारी करुणा ल्यो रिषिराय।।4।। तप गज चढि रणभूमिमें, क्षमा खड्ग करि धारि। कमल अरीकी जयकरी, शांति ध्वजा करि लार।। हमारी करुणा ल्यो रिषिराय।।5।। निराभरण तन अति लसै, निर अंबर निरदोष। 562
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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