SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 538
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (दोहा) बुद्धिरिद्धिधर मुनिजणी, पूज करै जु सदीप। बुद्धि प्रचुर जाकै हृदय, परगट होय अतीव।।1।। ।इत्याशीर्वादः॥ ।।इति प्रथम कोष्ठ पूजा॥ द्वितीय क्रिया चारण सिद्धिधारक ऋषीश्वर (द्वितीय कोष्ठ) पूजा (अडिल्ल छंद) क्रिया चारणी रिद्धि भेद नव हैं सही। तिन के धारण सर्व मुनीश्वर हैं मही।। आह्वानन संस्थापन मम सन्निहित करूँ। मन वच तन करि शुद्ध वार त्रय उच्चरूँ॥1॥ ॐ ह्रीं क्रियाचारिणी रिद्धिधारक सर्वऋषीश्वराः अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्। ऊँ ह्रीं क्रियाचारिणी रिद्धिधारक सर्वऋषीश्वराः अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ऊँ ह्रीं क्रियाचारिणी रिद्धिधारक सर्वऋषीश्वराः अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्। (अथाष्टक चालगी दोलणी की में तथा भागि की में) रत्नहेम भंग भरि गंगजल ल्यायो। जन्म मरण मेटिवे कूँ भाव से चढ़ायो।। चारण ऋद्धिधारी मुनीश्वर पूज करूँ जी। पूज करूँ पूज करूँ पूज करूँ जी।।1। ऊँ ह्रीं चारणरिद्धिधारक सर्वऋषीश्वरेभ्यः जलम् निर्वपामीति स्वाहा। चंद्रगंध कूँ घसाय कुंकुमा मिलाई। भवातप नसावने कूँ चरण 1 चढ़ाई।। चारण ऋद्धिधारी मुनीश्वर पूज करूँ जी। पूज करूँ पूज करूँ पूज करूँ जी।।2।। ॐ ह्रीं चारणरिद्धिधारक सर्वऋषीश्वरेभ्यः चन्दनम् निर्वपामीति स्वाहा। 538
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy