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________________ इनके पद इक कोडि इक्यासी, लाख हजार पाँच है भासी। तिन में सब इन को है रूपा, ये सब पढ़ें मुनीश्वर भूपा।।15। दूजो भेद सूत्र मरजादी, त्रिशद तरेसठि भेद कुवादी। लाख अठासी पद हैं या के, पढ़े ताहि वंदूं पद जाके।।16।। प्रथमानुयोग तीजो वरभेदं, त्रेषठि शलाका पुरसनि वेदं। पाँच सहस्त्र पद याके जाने, पाप पुन्य फल सर्व पिछाने।।17। चौथो भेद पूर्वगत जा मैं, पूरव चौदह गर्भित तामैं। कोडिपिच्याणवै लाखपचासं, अधिक पाँच पद जाणों तास।।18॥ श्रुत संपति सब इनकै माँहीं, धारणकर सबश्रुत अवगाहीं। जे मुनीश सब पूरवधारी, तिनकी महिमा अगम अपारी।।19॥ पंचम भेद चूलिका जासा, जल थल माया रूप अकासा। पददश कोडिलाख गुण चासा, षट्चालीस सहस्त्र सब तासा।।20। इक सौ वारा कोडि पदावन, लाख तियासी सहस अठावन। पाँच अधिक सबपद अंगनिके, मुनिवर पढ़े नमूं पद तिनके।।21।। इक्यावन कोडि रु लाख आठतित, सहस चौरासी षट्शत परिमित। साढ़ा इक वीस श्लोक अनुष्टं, एकजु पद के कहे स्पष्टं।।22॥ द्वादशांगमय रचनासारी, बुद्धि ऋद्धि में गर्भित भारी। तप प्रभाव रिधि ऐसी धारी, तिन पद धोक त्रिकाल हमारी।।23।। (धत्ता) यह जयमाला परम रसाला, बुद्धि रिद्धिधर गुणमाला। मुनिगणमाला हरिजंजाला, बुद्धि विशाला करि भाला।।24।। ॐ ह्रीं शुद्धि बुद्धि दायक ऋद्धिधारक बुद्धि रिद्धिदायक सर्वऋषीश्वरेभ्यो जयमाला पूर्णाघु निर्वपामीति स्वाहा। 537
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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