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________________ नानाविघ्नहर प्रतापजनकं, संसारपारप्रदं। संस्तुत्यं श्रीदं करोमि सततं, श्रीसोमसेनोऽप्यहम्।। पूर्णार्येण मुदा सुभव्यसुखदं, आदीश्वराख्यापरं। हीरापण्डितसूपरोधवशतः, स्तोत्रस्य पूजाविधिम्।।49।। ओं ह्रीं हृदयस्थिताय चतुर्विंशति-दलकमलाधिपतये क्लीं महाबीजाक्षर सहिताय हृदयस्थिताय श्री वृषभजिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।49॥ वसरसुगन्ध-सुतन्दुल-पुष्पकैः, प्रवरमोदक-दीपक-धूपकैः। फलभरै परमात्म-प्रदायकं, प्रवियजे जयदं धनदं जिनम्।।50॥ ओं ह्रीं हृदयस्थिताय अष्टचत्वारिंशद्-दलकमलाधिपतये क्लीं महाबीजाक्षर सहिताय हृदयस्थिताय श्री वृषभजिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥4॥ जलगन्धाष्टभिर्द्रव्यै-युगादिपुरुषं यजे। सोमसेनेन संसेव्यं, तीर्थ-सागर-चर्चितम्।। ऋद्धि अध्य ओं ह्रीं अहँ णमो जिणाणं अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।।1।। ओं ह्रीं अर्ह णमो ओहि-जिणाणं अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।।2। ओं ह्रीं अहँ णमो परमोहि-जिणाणं अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।।3।। ओं ह्रीं अहँ णमो सव्वोहि-जिणाणं अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।।4।। ओं ह्रीं अर्ह णमो अणंतोहि-जिणाणं अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।।5।। ओं ह्रीं अहँ णमो कुट्ठबुद्धीणं अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।।6।। ओं हीं अहँ णमो बीजबुद्धीणं अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।।7। ओं ह्रीं अहँ णमो पादानुसारीणं अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।।8। ओं ह्रीं अहँ णमो संभिन्नसोदराणं अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।।9।। 50
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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