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________________ अक्षत ले शशि दुतिकारी, अक्षय गुण के करतारी। तपसी जिन चौवि स गाए, हम पूजत विघ्न नशाए।। ॐ ह्रीं श्री ऋषभादिवर्द्धमानजिनेन्द्रेभ्यः अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।। बहूफूल सुवर्ण चुनाऊँ, निज काम व्यथा हटवाऊँ। __तपसी जिन चौवि स गाए, हम पूजत विघ्न नशाए।। ॐ ह्रीं श्री ऋषभादिवर्द्धमानजिनेन्द्रेभ्य: पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।। चरु ताजे स्वच्छ बनाऊँ, निज रोग क्षुधा मिटवाऊँ। तपसी जिन चौवि स गाए, हम पूजत विघ्न नशाए।। ऊँ ह्रीं श्री ऋषभादिवर्द्धमानजिनेन्द्रेभ्यः नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा।। दीपक ले तम हरतारा, निज ज्ञानप्रभा विस्तारा। तपसी जिन चौवि स गाए, हम पूजत विघ्न नशाए।। ऊँ ह्रीं श्री ऋषभादिवर्द्धमानजिनेन्द्रेभ्यः दीपं निर्वपामीति स्वाहा।। धूपायन धूप खिवाऊँ, निज आठों कर्म जलाऊँ। तपसी जिन चौवि स गाए, हम पूजत विघ्न नशाए। ॐ ह्रीं श्री ऋषभादिवर्द्धमानजिनेन्द्रेभ्यः धूपं निर्वपामीति स्वाहा।। फल सुन्दर ताजे लाऊँ, शिव फल ले चाह मिटाऊँ। तपसी जिन चौवि स गाए, हम पूजत विघ्न नशाए।। ऊँ ह्रीं श्री ऋषभादिवर्द्धमानजिनेन्द्रेभ्यः फलं निर्वपामीति स्वाहा।। 489
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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