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________________ ऊँ ह्रीं श्रावण शुक्ला षष्ठयां श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय जन्मकल्याणकप्राप्ताय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।22॥ वदि पूष चतुर्दशि जानी, वामादेवी हरषानी। __जिन पाश्व जने गुणखानी, पूजें हम नाग निशानी।। ऊँ ह्रीं पौष कृष्णा चतुर्दश्यां श्रीपाश्वजिनेन्द्राय जन्मकल्याणकप्राप्ताय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।23॥ शुभ चैत्र त्रयोदशी शुक्ला, माता गुणखानी त्रिशला। श्री वर्द्धमान जिन जाए, हम पूजत विघ्न नशाए।। ऊँ ह्रीं चैत्र शुक्ला त्रयोदश्यां श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय जन्मकल्याणकप्राप्ताय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।24॥ जयमाला (भुजंगप्रयात) नमो जै नमो जै नमो जै जि नेशा, तुम्ही ज्ञान सूरत तुम्ही शिव प्रवेशा। तुम्हें दर्श करके महामोह भाजे, तुम्हें पर्श करके सकल ताप भाजे।।1॥ तुम्हें ध्यान में धारते जो गिराई, परम आत्म अनुभव छटा सार पाई। तुम्हें पूजते नित्य इन्द्रादि देवा, लहैं पुण्य अदभुत परम ज्ञान मेवा।।2।। तुम्हारो जनम तीन भू दुःख निवारी, महा मोह मिथ्यात हिय से निकारी। तुम्हीं तीन बोध धरे, जन्म ही से, तुम्हें दर्शनं क्षायिकं जन्म ही से।।3।। तुम्हें आत्मदर्शन रहे जन्म ही से, तुम्हें तत्व बोधं रहे जन्म ही से। तुम्हारा महा पुण्य आश्चर्यकारी, सु महिमा तुम्हारी सदा पापहारी।।14।। करा शुभ न्हवन क्षीरसागर सु जल से, मिटी कालिमा पाप की अंग पर से। हुआ जन्म सफलं करी सेव देवा, लहूं पद तुम्हारा इसी हेतु सेवा।।5।। 487
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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