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________________ ऊँ ह्रीं श्री चतुर्विंशतितीर्थंकराः गर्भकल्याणकप्राप्ताः अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा। सुवरण मय पावन फूला, चित कामव्यथा निर्मूला। जिन मात जगँ सुखदाई, जिनधर्म प्रभाव सहाई।। ऊँ ह्रीं श्री चतुर्विंशतितीर्थंकरा: गर्भकल्याणकप्राप्ताः पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। ताला पकवान बनाऊँ, जासे क्षुधारोग नशाऊँ। जिन मात जनँ सुखदाई, जिनधर्म प्रभाव सहाई।। ऊँ ह्रीं श्री चतुर्विंशतितीर्थंकराः गर्भकल्याणकप्राप्ताः नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। दीपक रत्नन मय लाऊँ सब दर्शनमोह हटाऊँ। जिन मात जगँ सुखदाई, जिनधर्म प्रभाव सहाई।। ॐ ह्रीं श्री चतुर्विंशतितीर्थंकराः गर्भकल्याणकप्राप्ताः दीपं निर्वपामीति स्वाहा। धूपायन धूप जलाऊँ, कर्मन का वंश मिटाऊँ। जिन मात जजॅ सखदाई, जिनधर्म प्रभाव सहाई।। ऊँ ह्रीं श्री चतुर्विंशतितीर्थंकराः गर्भकल्याणकप्राप्ताः धूपं निर्वपामीति स्वाहा। फल उत्तम-उत्तम लाऊँ, शिवफल उद्देश बनाऊँ। जिन मात जगूं सुखदाई, जिनधर्म प्रभाव सहाई।। ऊँ ह्रीं श्री चतुर्विंशतितीर्थंकराः गर्भकल्याणकप्राप्ताः फलं निर्वपामीति स्वाहा। शुचि आठों द्रव्य मिलाऊँ, गुण गाकर मन हरषाऊँ। जिन मात जगूं सुखदाई, जिनधर्म प्रभाव सहाई।। ऊँ ह्रीं श्री चतुर्विंशतितीर्थंकराः गर्भकल्याणकप्राप्ताः अध्यं निर्वपामीति स्वाहा। 473
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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