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________________ 546. ऊँ पंच कल्याणक विधान (ब्र सीतल प्रसाद जी कृत) गर्भकल्याणक पूजन (दोहा) श्री जिन चौबीस मात शुभ, तीर्थंकर उपजाय। कियो जगत कल्याण बहु, पूजों द्रव्य मंगाया । ऊँ ह्रीं श्री चतुर्विंशतितीर्थंकराः गर्भकल्याणकप्राप्ताः अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननम्। ऊँ ह्रीं श्री चतुर्विंशतितीर्थंकराः गर्भकल्याणकप्राप्ताः अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ऊँ ह्रीं श्री चतुर्विंशतितीर्थंकराः गर्भकल्याणकप्राप्ताः अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्। (चाली) भरि गंगा जल अविकारी, मुनि चित सम शुचिता धारी। जिन मात जजूँ सुखदाई, जिनधर्म प्रभाव सहाई।। ऊँ ह्रीं श्री चतुर्विंशतितीर्थंकराः गर्भकल्याणकप्राप्ताः जलं निर्वपामीति स्वाहा। घसि केशर चन्दन लाऊँ, भव ताप सकल प्रशमाऊँ। जिन मात जजूँ सुखदाई, जिनधर्म प्रभाव सहाई।। ऊँ ह्रीं श्री चतुर्विंशतितीर्थंकराः गर्भकल्याणकप्राप्ताः चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा। शुभ अक्षत दीर्घ अखण्डे, तृष्णा पर्वत निज खण्डे। जिन मात जजूँ सुखदाई, जिनधर्म प्रभाव सहाई।। 472
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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