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________________ सकल शास्त्र चिन्तन करें, एक मुहूर्त मंझार। घटत न रुचि मन वीरता, जजू यती भवतार।। ऊँ ह्रीं मनोबलऋद्धिप्राप्तेभ्यः अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।226।। सकल शास्त्र पढ़ जात हैं, एक मुहूर्त मंझार। प्रश्नोत्तर कर कण्ठ शुचि, धरत यजूं हितकार।। ऊँ ह्रीं बचनबलऋद्धिप्राप्तेभ्यः अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।227॥ मेरू शिखर राखन वली, मास वर्ष उपवास। घटै न शक्ति शरीर की, यजूं साधु सुखवास।। ऊँ ह्रीं कायबलऋद्धिप्राप्तेभ्यः अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।228॥ अंगुलि आदि संपर्शते, श्वास पवन छू जाय। रोग सकल पीढ़ा टले, जजूं साधु सुखपाय।। ऊँ ह्रीं आम|धिऋद्धिप्राप्तेभ्यः अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।229।। मुखते उपजे राल जिन, शमन रोग करतार। परम तपस्वी वैद्य शुभ, जजू साधु अविकार।। ऊँ ह्रीं क्ष्वेलौषधिऋद्धिप्राप्तेभ्यो अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।2300 तन पसेव सह रज उड़े, रोगीजन छू जाय। रोग सकल नाशे सही, जजू साधु उमगाय।। ऊँ ह्रीं जलौषधिऋद्धिप्राप्तेभ्यो अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।231॥ नाक आंख कर्णादि मल, तन स्पर्श हो जाय। रोगी रोग शमन करें, जजू साधु सुख पाय।। ऊँ ह्रीं मलौषधिऋद्धिप्राप्तेभ्यो अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।232॥ मल निपात पर्शी पवन, रजकण अंग लगाय। रोग सकल क्षण में हरे, जजू साधु अधजाय।। ऊँ ह्रीं विजौषधिऋद्धिप्राप्तेभ्यो अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।233॥ 467
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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