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________________ जिनेन्द्रपादाब्जयुगस्य भक्त्या, जिनेन्द्रमार्गस्य सुरक्षपालं। सम्यक्त्वयुक्तं गुणरश्मिपूर्णं, गोवक्त्रयक्षं परिपूजयामि।। ओं ह्रीं वृषभदेवः पादारविन्दसेवक गोवक्त्रयक्षाय आगतविघ्ननिवारकाय अयं निर्वपामीति स्वाहा। चक्रेश्वरी जैनपदारविन्द-सहानुरक्तां जिनशासनस्थां। विघ्नौघहन्त्री सुखधामकीं, भक्त्या यजे तां सुखकार्यकर्तीम्।। ओं ह्रीं जिनमार्गरक्षिकायै दारिद्रयनिवारिकार्यै चक्रेश्वर्यै अध्यं निर्वपामीति स्वाहा। अब संस्कृत के भक्तामर से पाठ शुरू करें और उसके अन्त में निम्नलिखित मन्त्र बोलकर अर्घ चढ़ावेंॐ ह्रीं क्लीं श्रीं अहँ श्री वृषभनाथ-तीर्थंकराय नमः अर्घम् निर्वपामीति स्वाहा। इसके पश्चात् निर्धारित समय तक संस्कृत व हिन्दी का पाठ मधुर वाणी में शुद्ध उच्चारण से करते रहें। अगले दिन निर्धारित समय समाप्त होने पर निम्नलिखित मन्त्र 108 बार बोलकर हर मन्त्र के पश्चात् एक एक लौंग चढ़ावें। मन्त्रः - ऊँ ह्रीं क्लीं श्रीं अहँ श्री वृषभनाथ तीर्थंकराय नमः स्वाहा। भक्तामर स्तोत्र (अष्टदल कमल पूजा) भक्तामर-प्रणत-मौलि-मणि-प्रभाणा- मुद्योतकं दलित-पाप-तमो-वितानम्। सम्यक्-प्रणम्य जिन-पाद-युगं युगादा- वालम्बनं भव-जले पततां जनानाम्।।1।। ऊँ ह्रीं विश्वविघ्नहराय क्लीं महाबीजाक्षर सहिताय हृदयस्थिताय श्री वृषभजिनाय अयं निर्वपामीति स्वाहा॥1॥ 39
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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