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________________ अर्थाष्टकं ऊँ ह्रीं परमब्रह्मणे अनन्तानन्त ज्ञानशक्तये जलं निर्वपामीति स्वाहा। ऊँ ह्रीं परमब्रह्मणे अनन्तानन्त ज्ञानशक्तये चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा। ऊँ ह्रीं परमब्रह्मणे अनन्तानन्त ज्ञानशक्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। ऊँ ह्रीं परमब्रह्मणे अनन्तानन्त ज्ञानशक्तये पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। ऊँ ह्रीं परमब्रह्मणे अनन्तानन्त ज्ञानशक्तये चरूं निर्वपामीति स्वाहा। ऊँ ह्रीं परमब्रह्मणे अनन्तानन्त ज्ञानशक्तये दीपं निर्वपामीति स्वाहा। ऊँ ह्रीं परमब्रह्मणे अनन्तानन्त ज्ञानशक्तये धूपं निर्वपामीति स्वाहा। ॐ ह्रीं परमब्रह्मणे अनन्तानन्त ज्ञानशक्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। ऊँ ह्रीं परमब्रह्मणे अनन्तानन्त ज्ञानशक्तये अध्यं निर्वपामीति स्वाहा। ऊँ ह्रीं परमब्रह्मणे अनन्तानन्त ज्ञानशक्तये मंगलद्रव्यार्चन करोमि स्वाहा। शान्तये शान्तिधाराः। पुष्पांजलिं क्षिपेत्। अथः स्तुतिः तुभ्यं नमो दशगुणोर्जित दिव्यगात्र! कोटि-प्रभाकर-निशाकर-जैत्रतेजः। तुभ्यं नमोति चिरदर्जय घातिजात-घातोपजात-दशसार-गुणाभिराम।।1। तुभ्यं नमः सुरनिकाय कृतैर्विहारे, दिव्यैश्चतुर्दश विधातिशयेरुपेत। तुभ्यं नमस्त्रिभुवनाधिपतित्वचिह्न- श्री प्रातिहार्याष्टक (र्यप्रवराष्टक) लक्षितार्हन।।2।। तुभ्यं नमः परमकेवलबोधावर्धे, तुभ्यं नमः समसमस्त-पदावलोक। तुभ्यं नमो निरुपमान निरन्तवीर्य, तुभ्यं नमो निजनिरंजन नित्यसौख्या।।3।। तुभ्यं नमः सकल-मंगलवस्तु-मुख्य, तुभ्यं नमः शिवसुखप्रद पापहारिन्। तुभ्यं नमस्त्रिजगदुत्तम लोकपूज्य, तुभ्यं नमः शरणभूत्रय रक्ष-रक्षा।4।। तुभ्यं नमोस्तु नवकेवल पूर्वलब्धे, तुभ्यं नमोस्तु परमैश्वर्योपलब्धे। तुभ्यं नमोस्तु मुनिकुञ्जर यूथनाथ, तुभ्यं नमोस्तु भुवनत्रितयैकनाथ।।5।। (इति जिनार्चाभिमुखं स्तुतिं पठेत्। 343
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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