SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 306
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्रोधसहित वच असत कहा है, करे प्रतीति न कोई। तातें क्रोध बिना सच भाषे, वचन महाशुभ होई।। ऐसो सत्य-महाव्रत धारी, जग गुरुराज सुभाखे। या जुत सम्यक्चारित सोई, पूजों व्रत अभिलाखे।। ओं ह्रीं क्रोधरहितसत्यमहाव्रतसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। लोभ तनें वश सांच न बोले, ना परतीति शुभाई। लोभ बिना परमारथ भाषे, सत्य-वचन सुखदाई।। या विध सत्य महाव्रत उत्तम, भवदधि परता राखे। या जुत सम्यक्चारित सोई, पूजों व्रत अभिलाखे।। ओं ह्रीं निर्लोभभावनायुतसत्यमहाव्रतसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। भयजुत प्राणी सांच न बोले, कहे झूठ उकताई। भय से भीत अन्यथा भाषे, यह निश्चय लखि भाई।। भीति बिना जो होय महाव्रत, सो जिय का सत राखे। या जुत सम्यक्चारित सोई, पूजों व्रत अभिलाखे।। ओं ह्रीं भयरहितसत्यमहाव्रतसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। हास्य विर्षे सब सांच न जाने, हास्य सत्य को घाते। हास्य तहां सतवैन न उपजे, हास्य बिना सत पावे।। तातें हास्य बिना जु महाव्रत, शुद्ध होय जिन भाखें। या जुत सम्यक्चारित सोई, पूजों व्रत अभिलाखे।। ओं ह्रीं हास्यरहितसत्यमहाव्रतसहित सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 306
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy