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________________ षट्कायिक जीवन पीड़ाहर, मारग देख सु चालें। सूक्ष्म बादर सब पर करुणा, चार हाथ लखि हालें || शुद्ध अहिंसा व्रत तब होवे, यह जिनवाणी भाखे। या जुत सम्यक्चारित सोई, पूजों व्रत अभिलाखे|| ओं ह्रीं ईसासमितिसहिताहिंसामहाव्रतयुत सम्यक्चारित्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। पिछीकमंडलुपुस्तक निजकर, जोवें धरें उठावें। दयाभाव सब जीवन ऊपर, तातें यह विधि लावें।। महावरत तब शुद्ध अहिंसा, त्रस थावर की राखें। या जुत सम्यक्चारित पूजों, करके व्रत अभिलाखे।। ओं ह्रीं आदाननिक्षेपणसमितियुताहिंसामहाव्रतयुत सम्यक्चारित्राय अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा। जीवदया के हेतु महामुनि, दोष हटाकर खावें । समतासागर सब जियबन्ध, खान पान सुध पावें।। तबहिं अहिंसाव्रत की शुद्धी, होय इसी विधि राखें। या जुत सम्यक्चारित पूजों, करके व्रत अभिलाखे॥ ओं ह्रीं एष्णसमितिसहिताहिंसामहाव्रतयुत सम्यक्चारित्राय अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा। प्रथम महाव्रत जान अहिंसा, सो या विधि समझायो । पांच भावना ताकी ऐसी, इनसे शुद्ध बतायो। यही अहिंसा महासुव्रत है, सब जीवन पत राखे। या जुत सम्यक्चारित सोई, पूजों व्रत अभिलाखे।। ओं ह्रीं पंचभावनायुताहिंसामहाव्रतसहित सम्यक्चारित्राय अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 305
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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