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________________ मुनिचितसम शीतल चन्दन ले साम्यभाव को अपनाऊं। भव आताप मिटावन कारण महाधवल हृदय लाऊं। आगम वाणी मुक्ति निशानी महापावनी भवि मानी। पुण्यपापविच्छेदकृपानी, चिदानन्द की रजधानी। ऊँ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूतस्याद्वादमुद्राङ्कितधवलग्रन्थाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। चंद्रोज्जवल सम उज्जवल अक्षत लेकर निज गुण मन भाऊ । अक्षयपद प्राप्ति के हेतु मैं महाधवल हृदय लाऊं। आगम वाणी मुक्ति निशानी महापावनी भवि मानी। पुण्यपापविच्छेदकृपानी, चिदानन्द की रजधानी॥ ऊँ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूतस्याद्वादमुद्राङ्कितधवलग्रन्थाय अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। सुमन सुगन्धित लेकर कर में चिदवदनी तुम गुण गाऊं। समय शूल निर्मूल करन को महाधवल हृदय लाऊं। आगम वाणी मुक्ति निशानी महापावनी भवि मानी। पुण्यपापविच्छेदकृपानी, चिदानन्द की रजधानी। ऊँ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूतस्याद्वादमुद्राङ्कितधवलग्रन्थाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। मोदक खाजे गझा ताजे श्रुतचरण में लाय चढाऊं। क्षुधा निवारण कारण अग मैं महाधवल हृदय लाऊं। आगम वाणी मुक्ति निशानी महापावनी भवि मानी। पुण्यपापविच्छेदकृपानी, चिदानन्द की रजधानी। ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूतस्याद्वादमुद्राङ्कितधवलग्रन्थाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। 25
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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