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________________ (धत्ता छन्द) जय श्रुत गुणमाला धवल रसाला बुद्धि विशाला मम दीजे। वसु अंग नवाऊं गुणगण गाऊं ज्ञान बढाऊं दुख छीजे।16। ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूतस्याद्वादमुद्राङ्कितजयधवल श्रुतज्ञानाय अनध्यपद प्राप्तये अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।। इत्याशीर्वादः श्री महाधवल पूजा महामोहनाशक प्रबल महाधवल विख्यात। महाबन्ध प्रणम् तुम्हें करहु मुझे अवदात।1। भूतवली आचार्यकृत बन्धतत्त्व का ज्ञान। दुर्भयहारि सुयनकरी हृदय विराजो आन।2। ऊँ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूतस्याद्वादमुद्राङ्कितजयधवल ग्रन्थ! अत्र अवतरावतर संवौषट् आह्वाननं। ऊँ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूतस्याद्वादमुद्राङ्कित जयधवल ग्रन्थ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ऊँ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूतस्याद्वादमुद्राङ्कित जयधवल ग्रन्थ अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्। (चालः करले करले तू नित प्राणी पूजन करले जिनवानी) निर्मल सलिल लेय कर में निर्मल भाव सों भाऊं। जन्म जरा मृतु नाश करन को महाधवल हृदय लाऊं। आगम वाणी मुक्ति निशानी महापावनी भवि मानी। पुण्यपापविच्छेदकृपानी, चिदानन्द की रजधानी।। ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूतस्याद्वादमुद्राङ्कितधवलग्रन्थाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। 24
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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