SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अथ श्री धवल ग्रन्थ पूजा स्थापना - गीता छन्द जय जय धवल तुम हो धवल कर दो धवल इस दास को। जिनवाणि के तुम अंश हो मुझ वास दो निज पास को।। ___ तुम ज्ञान अरु विज्ञान के दाता हरो सन्ताप को। ये भाव भर अति भक्ति से करते नमन हम आपको।। ऊँ ह्रीं श्रीजिनमुखोदूतमहाकर्मप्रकृतिप्राभृतधवलश्रुतज्ञान ! अत्र अवतरावतर संवौषट्। (आह्वानं) ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूतमहाकर्मप्रकृतिप्राभृतधवलश्रुतज्ञान ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। (स्थापनम्) ऊँ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूतमहाकर्मप्रकृतिप्राभृतधवलश्रुतज्ञान ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। (सन्निधिकरणम्) सुरसरिता को जल सार, निर्मल भावन सों। कञ्चनझारी की धार, ढारूं उमङ्गन सों।। ये प्राभृत के अधिकार, चौबीसों भारी। मैं धवल नमों सुखकार, चिरचित अघहारी।। ॐ हीं श्रीजिनमुखोद्भूतधवलश्रुतज्ञानाय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।।। मलयागिरि चन्दनसार, शीतल मुनिचित सों। तुम आगे दूं यह धार, छूटू भव दुख सों।। ये प्राभृत के अधिकार, चौबीसों भारी। मैं धवल नमों सुखकार, चिरचित अघहारी।। ऊँ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूतधवलश्रुतज्ञानाय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।2। ते तन्दुल उज्ज्वल सार, चोखे अनियारे। दीने तुम चरणन डार, उत्तम दृगहारे।। ये प्राभृत के अधिकार, चौबीसों भारी। मैं धवल नमों सुखकार, चिरचित अघहारी।। ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूतधवलश्रुतज्ञानाय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।3। 17
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy