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________________ 18. मुनिसुव्रतनाथ (मदाबलिप्तकपोल छन्द) मुनिसुव्रत जिननाथ सदा आनद के दाई। सुन्दर निर्जरकूट जहांतें शिवपुर जाई।। निन्यानव कोड़ाकोडि कहे मुनि कोड़ि सत्याना। नौ लख जोड़ मुनीन्द, कहे नौ से निन्याना।। सोरठा- कर्मनाश ऋषिराज, पंचमगति के सुख लहे। तारणतरण जहाज, मो दुख दूर करो सकल।। (भुजंगप्रयात छन्द) बली मोह की फौज प्रभु जी भगाई, जग्योज्ञान पंचममहा सौख्यदाई। समोसर्ण धरणेन्द ने तब बनायो, तबैदेव सुरपति सभी शीशनायो।। जयजय जिनेन्द्रं सुशब्दं उचारी, भए आजदर्शन सबै सौक्खकारी। गये सर्वपातक प्रभु मूरहीते, जबै दर्श कीने प्रभ दूरहीतें।। सुनीनाथ श्रवनन जु तेरी बढाई, गहो शरण हमने तुम्हारो सुआई। बली कर्म नाशे जबै मुक्तिपाई, तिन्हें हाथ जोरे सदाशीश नाई।। ओं ह्रीं निर्जरकूटतः श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्रादि निन्यानवेकोड़ाकोडि सत्तानवेकोडि नौ लाख नौ सौ निन्यानवे मुनि सिद्धपदप्राप्तेभ्यः श्रीसम्मेदशिखरसिद्धक्षेत्रेभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 19. नमिनाथ, मित्रधरकूट (जोगीरासा) कूट मित्रधर परम मनोहर, सुन्दर अति छविदाई। श्रीनमिनाथ जनेश्वर जॅहतें, अविनाशी पद पाई। नौसे कोड़ाकोडि मुनिवर, एक अरब युत जानों। लाख पैंतालिस सातसहसअरु, नौसैव्यालिस मानो।। 146
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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