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________________ जे लघु भारी उष्ण शीतल, नरम कर्कश जानिये। रुखी रु चिकनों आठ लक्षण, फरस इन्द्री मानिये।। या फरस इन्द्री जगत जीत्यो, तासु को जे वश करें।। ते साधु पूजों अध्य कर ले, तास फल सुख संचरें।। ॐ ह्रीं स्पर्शनेन्द्रियजयनिरतसाधुपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। मिष्ट खट्टा कटु कषायल, चरपरों पाँचों सही। ये रसन इन्द्री विषय जियको, जकडि करि बाँधे मही।। इन्द्री जु रसना जगत जीत्यो, ता सकू जे वश करें।। ते साधु पूजों अध्य कर ले, तास फल सुख संचरें।। ॐ ह्रीं रसनेन्द्रियजयनिरतसाधुपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। शुभगन्ध अरु दुर्गन्ध दो विध, गन्ध इन्द्रिय जानिये। इस विषयवश जिय होय रागी, द्वेष उर महिं आनिये।। इन जीय जग के सकल जीते, तास को जे वश करें।। ते साधु पूजों अध्य कर ले, तास फल सुख संचरें।। ऊँ ह्रीं घ्राणेन्द्रियजयनिरतसाधुपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। पीत श्याम सुफेद सब्ज सु लाल यह पाँचों कहे। इनके वशी जिय देखि पुद्गल, राग द्वेष स्वचित लहें।। जो नेत्र इन्द्री विषय वश करि, आज निरअंकुश फिरें।। ते साधु पूजों अध्य कर ले, तास फल सुख संचरें।। ऊँ ह्रीं चतुरिन्द्रियजयनिरतसाधुपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 1352
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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