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________________ जो बोलि हैं वच सकल हितदा, खेद को जिय ना लहे। जिन बैन भाषित ध्याय भाषत, फेरि समता जुत रहें। तिन वचन को सुनि भव्य प्राणी, आपने अघ को हरें।। ते साधु पूजों अध्य कर ले, तास फल सुख संचरें।। ॐ ह्रीं भाषासमितिसहितसाधुपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। जे लहें अनजल शोधि शुभचित, एकटक ठाँड़े भखें। नहिं सैन अँगुरी नैन मुखतें, बोल हू नाँही अखें।। फिर दोष षट्चालीस टालें, और दूषण बहु टरें।। ते साधु पूजों अध्य कर ले, तास फल सुख संचरें।। ऊँ ह्रीं एषणासमितिसहितसाधुपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। जे धरें वस्तु संभाल पृथ्वी, लेंय भू तें जोयकें। परमाद तें लें धरे नाहीं, महाशुभ-चित होयके।। तिन माहिं नाहिं पमाद राखें, लगे अगले अघ हरें।। ते साधु पूजों अध्य कर ले, तास फल सुख संचरें।। ऊँ ह्रीं आदाननिक्षेपणसहितसाधुपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। मल मूत्र छोड़ें थान लखि के, तिरस थावर पालिया। निजभाव मीतो करम रीतो, और के अघ टालिया।। तिस बने राजे आप जोगी, वैर जिय सब परिहरें।। ते साधु पूजों अध्य कर ले, तास फल सुख संचरें।। ॐ ह्रीं व्युत्सर्गसमितिसहितसाधुपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 1351
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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