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________________ तन जावे तो भी भाई, ते झूठ न कहहिं कदाई। ते आचारज सुखदाई, सों पूजों अध्य चढ़ाई || ॐ ह्रीं उत्तमसत्यधर्मसहिताचार्यपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। जाके उर वांछा नाहीं, सो निर्मल शौच कहाहीं । ते आचारज सुखदाई, सों पूजों अघ्य चढ़ाई || ऊँ ह्रीं उत्तमशौचधर्मसहिताचार्यपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। वश प्राण सुइन्द्री रासो, सो संजम दो विधि भाखे। ते आचारज सुखदाई, सों पूजों अध्य चढ़ाई || ऊँ ह्रीं द्विविधसंयमधर्मसहिताचार्यपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। जो द्वादशविधि तप ल्यावे, परतन नहिं खेद लगावे । ते आचारज सुखदाई, सों पूजों अध्य चढ़ाई || ऊँ ह्रीं द्वादशतपः सहिताचार्य परमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। परद्रव्य नहीं अपनावे, सो त्यागधर्म चित भावे । ते आचारज सुखदाई, सों पूजों अघ्य चढ़ाई || ॐ ह्रीं त्यागधर्मसहिताचार्यपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। जो अन्तर बाहिर नागा, सो आकिंचन भय भागा। ते आचारज सुखदाई, सों पूजों अध्य चढ़ाई || ऊँ ह्रीं आकिंचन्यधर्मसहिताचार्यपरमेष्ठिभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 1332
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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