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________________ दिव्यधुनी सकल जीय को सुहाई, सुनें पापछय हो भला पुण्यदाई। नमें देव खग और सबै पाप जावे, ये महागुण जिन बिना नाहिं आवें।। ॐ ह्रीं दिव्यध्वनिप्रातिहार्यसहितजिनेभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।।3।। चमर गंध धारा जिमें शोभदाई, चलें देवकरि वोपमा भूरि थाई। घने जीव मुखतें प्रभू भक्ति गावें, ये महागुण जिन बिना नाहिं आवें।। ऊँ ह्रीं चतुःषष्टिचामरवीज्यमानजिनेभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।।4। जगपूज्य सिह पीठ भगवान केरो, नमें ता सको नाशिहै जगत फेरो। लगे कनक जुत रतन बहुशोभ द्यावें, ये महागुण जिन बिना नाहिं आवें।। ऊँ ह्रीं सिंहासनप्रातिहार्यसहितजिनेभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।।5।। महा जोति जिन तनतनो चक्र थायो, प्रभा पूजता ने भलो नाम पायो। तखे तास को सात भौ दरसि आबें, ये महागुण जिन बिना नाहिं आवें।। ऊँ ह्रीं प्रभामण्डलप्रातिहार्यसहितजिनेभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।।6।। घनी जाति के देव बाजे बजावें, तिको दुंदुभि शब्द शुभ नाम पावें। भने देव मुख वीनती हर्ष ल्यावें, ये महागुण जिन बिना नाहिं आवें।। ऊँ ह्रीं देवदुन्दुभिप्रातिहार्यसहितजिनेभ्यः अध्यम निर्वपामीति स्वाहा।।7। जड़े कनक नग छत्र मणि दंड धारें, लगी माल मोतिन की लिपटि सारें। मनोतीन जगजीव को छाय आवे, ये महागुण जिन बिना नाहिं आवें।। ऊँ ह्रीं छत्रत्रयप्रातिहार्यविभूषि तजिनेभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।।8।। 1325
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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