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________________ ॐ ह्रीं श्री पार्शवनाथमहावीरचरणस्पृस्टमथुराहिक्षेत्रेभ्यः जम्बुनाम्नोऽन्तिमकेवलिनो निर्वाणस्पदक्षेत्राय मथुरानिकटे यमुनावनाय च अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा। गाथापञ्चकल्लाणठाणइं, जाणवि संजादमच्चलोयम्भि। मणवयकायसुद्धी, सव्वे सिरसा णमस्सामि।। (चौपाई) इस वर मनुष लोक के मांहि, पञ्च कल्याण ठाम जे पाहिं। सर्व तीर्थ मन वचतन ध्याय, ते थल पूजों अर्घ बनाय।। ॐ ह्रीं अधद्वितीयद्वीपेषु सप्तत्युत्तरशतार्यक्षेत्रेषु यानि यानि पंचकल्याणकसंयुक्तस्थानानि तेभ्यः सर्वेभ्यः अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा। गाथा अग्गलदेवं वंदमि, वरणयरे णियडकुंडली वंदे। पास सिवपुरि वंदमि, होलगिरि संखदेवम्भि।। (भुजंगी छन्द) वरनगरतीऊनकुंडन विर्षे, अग्गलदेव श्रीआदि देवानके थान हैं। तिनहिं पग बंदिअरु पार्शवजी, वंदिपुनि शिवपुरविर्षे बंदिजोर हाथ हैं। और होल्लयगिरि नाम पर्वतजहाँ, संखदेवम्मि कहिये जगन्नाथ हैं। संखवर चिन्हसंजुक्त श्रीनेमि प्रभूतिनहिं पग बंदिकर जोर जुग हाथ हैं।। ऊँ ह्रीं आदिनाथपदांकितवरनगरक्षेत्राय, पार्शवनाथपदाश्रितशिवपुरक्षेत्राय शंखचिन्हसंयुक्त नेमिनाथचरणस्पृष्टहोलागिरिक्षेत्राय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 127
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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