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________________ कहिं जिनमाता सुपने देखें सार जू, तिनके फल पूँछत पति-सो सुविचार जू। कहिं तीर्थंकर पंचकल्याणकरूपजू, तिनके चित्र-निहार सु परम अनूप जू।। ऊँ ह्रीं पंचमभूमौ शालवेदिकाचित्र-संयुक्त समवसरणस्थितजिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा। तीर्थंकर को नहुन भयो गिरि पर जहां, नागदत्त हाथी चढ़ इन्द्र गयो तहां। कर जिनवर को नहुन बड़े आनन्द-सों, नृत्य करत हरषायु सु गावें छन्द-सों।। ऊँ ह्रीं पंचमभूमौ जिनस्नपनचित्रसंयुक्त समवसरणस्थितजिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा। इन ही के चित्राम बने तहँ पेखिये, चक्रवर्ति की विभव कहूँ दृग दुखिये। षड्विध सेनाजाति तने चित्राम जु, सोहं सरस विशाल परम अभिराम जु।। ऊँ ह्रीं पंचमभूमौ चक्रवर्तिभव-चित्रसंयुक्त समवसरणस्थितजिनेन्द्राय अयं निर्वपामीति स्वाहा। नारायण-बलभद्र सु नयन निहारिये, प्रतिनारायण जान परम उर धारिये। तिनकी बड़ी विभूति और भव पाछिले, इनके भी चित्राम दिखावत हैं भले।। ऊँ ह्रीं पंचमभूमौशालवेदिकायानारायण-बलभद्रादि-विभवचित्रसंयुक्त समवसरणस्थितजिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा। भोगभूमि त्रय उत्तम-मध्यम जानिये, और जघन्य मिलाय सु हियमें आनिये। इनमें राजें सार जुगलिये देखिये, ऐसे ही चित्राम मनोहर पेखिये।। ऊँ ह्रीं पंचमभूमौ शालवेदिकायां भोगभूमियुगलचित्रसंयुक्त समवसरणस्थितजिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा। 1248
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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