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________________ पंचम भूमि वर्णन प्रारम्भ अडिल्ल भूमि पंचमी गली सु नैनन पेखिये, वाम-दाहिने भाग गली दो देखिये। दरवाजे आभ्यन्तर वेदी तीसरी, चार भाग परिमान सु सुन्दरता धरी।। ऊँ ह्रीं पंचमगल्यां वाम-दक्षिणभागयोः आभ्यन्तरगल्यां चतुर्थभागप्रमाणान्तरवेदिकासंयुक्त समवसरणस्थितजिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा। कोटि तीसरो भाग चार को सार जू, सुवरण-वर्ण विचार हिये में धार जू। तहाँ पांचवीं भूमि महा-सुन्दर कही, ध्वजा-समूह सुलहकें सुन्दरता लही।। ऊँ ह्रीं पंचमभूमौ चतुर्थभागस्वर्णमयमहासुन्दर-तृतीयसालसंयुक्त समवसरणस्थितजिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा। भूमि पाँचई भाग चवालिस जानिये, वलय व्यास पहिचान हिये में आनिये। वेदी कोट विशाल महाशोभा-शचो, नानाविध चित्राम चित्र करिके खचो।। ऊँ ह्रीं पंचमभूमौ चतुःचत्वारिंशद्-भागवलयव्यासवेदिका-चित्रसमूह-संयुक्त समवसरणस्थितजिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा। समवसरण चित्राम कहीं सु बने सही, कहं तीर्थंकर देव भवान्तर शुभ लही। इनके चित्र बने सुन्दर सु निहारिये, झकझकात सुखकार हिये में धारिये।। ऊँ ह्रीं पंचमभूमौ समवसरण-शालवेदिकायां-तीर्थंकरपूर्वभव-चित्रसंयुक्त समवसरणस्थितजिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा। 1247
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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