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________________ चारों दिशा सुहावनी मानस्तम्भ विशाल । सुर नर मुनि पूजा करें 'लाल' भने जयमाल।। (पद्धरि छन्द) जय-जय श्री मानस्तम्भ सार जय नमन करों कर - शीश - धार। जय-जय ताको वर्णन विशाल सुनतहिं छूटे भवि जगत-जाल।। जय प्रथम गली के मध्य जान जय दरवाजे शुभ चार मान। जय-जय तँह कोट सु तीन वीर जय तिन पर लहकें धुजा धीर ।। जब प्रथम कोट दूजा सु ठान जय तीजा कोट कहूं बखान। जहं कोट बीच में भूमि गाय तहँ बने सु वन सुन्दर सहाय ।। जय कोकिल तिनमें करत शोर जय शोभित शोभा करि स् जोर। जय लोकपाल के नगर सार जय-जय शोभित नानाप्रकार || जय आभ्यन्तर तीजा सु कोट जय तीन पीठ सोहें सु मोट जय त्रय कटनी करि शोभमान वैडूर्य - रतन की कान्ति जान।। पहिली दूजी मणिमय विशाल सब वर्ण रतन तीजी दयाल। जय वृषभदेव के त्रय विचार ऊँची वसु धनुष सु चार-चार।। तेइस जिन के क्रम-हान जान जय चौड़ी तीजी पीठ आना। इक सहस धनुष भाषे काय जय वृषभदेव के यों बताय।। तापर श्री मानस्तम्भ सार शोभित नीचे चौकोर धार । जय ऊपर गोलाकार जान जय अत उतुंग देदीप्यमान।। जय पहल सहस दो जगमगात जय वज्रमयी नीचे सुजात। जय लसें फटिकमय बीचमान वैडूर्य मणिमय ऊर्ध्व जान।। जय तापर कमल बनो सरूप जापन कलशा शोभें अनूप। जय ध्वजा-दण्ड तापर सुहाय जे जगमग जगमग लहलहाय।। जय घण्टा-चमर सु छत्रजान जय रतनमाल माता प्रमान। 1212
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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