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________________ फल पक्व शुद्ध रसजुक्त लिया, पदकंज पूजिहौं खोलि हिया। सुखदाय पाय यह सेवत हौं, प्रभुपार्श्व पार्श्वगुन सेवत हौं।। ऊँ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय मोक्षफल-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।8। जल आदि साजि सब द्रव्य लिया, कनथार धार नुतनृत्य किया। सुखदाय पाय यह सेवत हौं, प्रभुपार्श्व पार्श्वगुन सेवत हौं।। ऊँ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। पंचकल्याणक पक्ष वैशाखकी श्याम दूजी भनो, गर्भकल्यान को द्यौस सोही गनों। देव-देवेन्द्र श्रीमातु सेवें सदा, मैं जजौं नित्य ज्यों विघ्न होवे विदा।। ऊँ ह्रीं वैशाखकृष्णा-द्वितीयायां गर्भमंगल-प्राप्ताय श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।। पौषकी श्याम एकादशी को स्वजी, जन्मलीनों जगन्नाथ धर्मध्वजी। नाग-नागेन्द्र नागेन्द्र पै पूजिया, मैं जजों ध्यायकें भक्ति धारों हिया।। ऊँ ह्रीं पौषकृष्णा-एकादश्यां जन्ममंगल-मंडिताय श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।21 कृष्णएकादशी पौषकी पावनी, राजको त्याग वैराग धर्यो वनी। ध्यान चिद्रूपको ध्याय साता मई, आपको मैं जजों भक्ति भावै लई। ॐ ह्रीं पौषकृष्णा-एकादश्यां तपोमंगल-मंडिताय श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।। 1178
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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