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________________ हरिगंध कुंकुम कर्पूर घसों, हरि - चिह्न हेरि अरचों सुरसों । सुखदाय पाय यह सेवत हौं, प्रभुपार्श्व पार्श्वगुन सेवत हौं।। ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय भवाताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। 2। हिम हीर नीर जस मान शुचं, वरपुंज तंदुल तवाग्र मुचं सुखदाय पाय यह सेवत हौं, प्रभुपार्श्व पार्श्वगुन सेवत हौं।। ऊँ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। 3 । कमलादिपुष्प धनुपुष्प धरी, मदभंजन - हेत ढिग पुंज करी । सुखदाय पाय यह सेवत हौं, प्रभुपार्श्व पार्श्वगुन सेवत हौं। ऊँ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय कामबाण -विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। 4। चरु नव्य गव्य रस सार करों, धरि पादपद्मतर मोद भरों। सुखदाय पाय यह सेवत हौं, प्रभुपार्श्व पार्श्वगुन सेवत हौं । ऊँ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। 5। मणि दीप जोति, जगमग्ग मई, ढिग धारतें स्वपरबोध ठई। सुखदाय पाय यह सेवत हौं, प्रभुपार्श्व पार्श्वगुन सेवत हौं।। ऊँ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकार- विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। 61 दश-गंध खेय मन माचत हैं, वह धूम धूम - मिसि नाचत है। सुखदाय पाय यह सेवत हौं, प्रभुपार्श्व पार्श्वगुन सेवत हौं।। ऊँ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्म - दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। 7। 1177
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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