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________________ भवताप-घायक शान्तिदायक, मलय हरि घसि ढिग धरों। गुनगाय शीस नमाय पूजत, विघनताप सबै हरों।। शिव-साथ करत सनाथ सुव्रतनाथ, मुनि गुनमाल हैं। तसु चरन आनन्दभरन तारन-तरन विरद विशाल हैं।।2। ऊँ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय भवताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। तंदुल अखण्डित दमक शशिसम, गमक-जुत थारी भरों। पद-अखय-दायक मुकति-नायक, जानि पद-पूजा करों।। शिव-साथ करत सनाथ सुव्रतनाथ, मुनि गुनमाल हैं। तसु चरन आनन्दभरन तारन-तरन विरद विशाल हैं।।3।। ऊँ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। बेला चमेली रायबेली, केतकी करना सरों। जगजीत मनमथ-हरन लखि प्रभु, तुम निकट ढेरी करों।। शिव-साथ करत सनाथ सुव्रतनाथ, मुनि गुनमाल हैं। तसु चरन आनन्दभरन तारन-तरन विरद विशाल हैं।।4।। ऊँ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय कामबाण-विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। पकवान विविध मनोज्ञ पावन, सरस मृद्गुन विस्तरों। सो लेय तुम पदतर धरत ही छुधा-डाइनको हरों।। शिव-साथ करत सनाथ सुव्रतनाथ, मुनि गुनमाल हैं। तसु चरन आनन्दभरन तारन-तरन विरद विशाल हैं।।5।। ऊँ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। 1161
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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