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________________ (शिखरिणी) जजें हैं जो प्रानी दरब अरु भावादि विधिसों, करैं नाना भाँति भगति थुति औ नौति सुधिसों। लहै शक्री चक्री सकल सुख सौभाग्य तिनको, तथा मोक्षं जावे जजत जन जो मल्लिजिनको ॥ ।इत्याशीर्वादः, पुष्पांजलिं क्षिपेत्। श्री मुनिसुव्रतनाथजिन-पूजा (मत्तगयंद छन्द) प्रानत-स्वर्ग विहाय लियो जिन, जन्म सु राजगृही - महँ आई। श्रीसुहमित्त पिता जिनके, गुनवान महापदमा जसु माई।। बीस धनू तनु श्याम छबी, कछु- अंक हरी वर वंश बताई । सो मुनि सुव्रतनाथ प्रभू कहँ थापतु हौं इत प्रीत लगाई।। ऊँ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। (इति आह्वाननम्) ऊँ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । (स्थापनम्) ऊँ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। (सन्निधिकरणम्) अष्टक (गीतिका) उज्जवल सुजत जिमि जस तिहारौ, कनक - झारीमें भरें। जर-मरन-जामन हरन-कारन, धार तुम पदतर करौं। शिव-साथ करत सनाथ सुव्रतनाथ, मुनि गुनमाल हैं। तसु चरन आनन्दभरन तारन - तरन विरद विशाल हैं। 1 ॥ ऊँ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। 1160
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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