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________________ जल मलय तंदुल सुमन चरु अरु दीप धूल कलावली। करि अरघ चरचों चरनजुग प्रभु मोहि तार उतावली।। श्रेयांसनाथ जिनन्द त्रिभुवनवन्द आनन्दकन्द है।। दुखदंद-फंद-निकंद पूरनचन्द जोतिअमंद हैं।। ऊँ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। पंचकल्याणक (छन्द आर्या) पुष्पोत्तर तजि आये विमलाउर जेठकृष्ण आ3 को। सुरनर मंगल गाये पूजों मैं नासि कर्म का को।। ॐ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णा-षष्ठ्या गर्भमंगल-मंडिताय श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।। जन्मे फागुनकारी, एकादशि तीन-ग्यानदृगधारी। इक्ष्वाकु-वंशतारी, मैं पूजों घोर-विघ्न-दुख-टारी।। ऊँ ह्रीं फाल्गुनकृष्णा-एकादश्यां जन्ममंगल-मंडिताय श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।2। भवतनभोग असारा, लख त्याग्यो धीर शुद्ध तप धारा। फागुनवदि इग्यारा, मैं पूजों पाद अष्ट-परकारा।। ऊँ ह्रीं माघकृष्णा अमावस्यायां निःक्रमणमहोत्सव-मंडिताय श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। 1111
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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