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________________ यह परम मोदक आदि सरस सँवारि सुन्दर चरु लियो। तुव वेदनी-मदहरन लखि, चरचों चरन शुचिकर हियो।। श्रेयांसनाथ जिनन्द त्रिभुवनवन्द आनन्दकन्द है।। दुखदंद-फंद-निकंद पूरनचन्द जोतिअमंद हैं।। ऊँ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।5। संशय-विमोह-विभरम-तम-भंजन दिनन्द समान हो। तातें चरनढिग दीप जोऊँ देहु अविचल ज्ञान हो।। श्रेयांसनाथ जिनन्द त्रिभुवनवन्द आनन्दकन्द है।। दुखदंद-फंद-निकंद पूरनचन्द जोतिअमंद हैं।। ऊँ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।6। वर अगर तगर कपूर चूर सुगन्ध भूर बनाइया। दहि अमरजिह्वविर्षे चरनढिग करमभरम जराइया।। श्रेयांसनाथ जिनन्द त्रिभुवनवन्द आनन्दकन्द है।। दुखदंद-फंद-निकंद पूरनचन्द जोतिअमंद हैं।। ऊँ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।7। सुरलोक अरु नरलोक के फल पक्व मधुर सुहावने। ले भगति सहित जजौं चरन शिव परम-पावन पावने।। श्रेयांसनाथ जिनन्द त्रिभुवनवन्द आनन्दकन्द है।। दुखदंद-फंद-निकंद पूरनचन्द जोतिअमंद हैं।। ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय मोक्षफल-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।8। 1110
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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