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________________ जयमाला (घत्ता) जय पद्म जिनेशा, शिव सद्येशा, पाद पद्म जजि पद्मेशा। जय भव तम भंजन, मुनि मन कंजन, रंजन को दिवसाधेशा।। (छन्द रूप चौपाई 16 मात्रा) जय जय जिन भवि जन हितकारी, जय जय जिन भवसागरतारी। जय जय समवसरण धन धारी, जय जय वीतराग हितकारी।। जय तुम सप्त तत्त्व विधि भाख्यौ, जय जय नव पदार्थ लखि आख्यो। जय षट द्रव्य पंचजुत काया, जय सब भेद सहित दरशाया। जय गुणथान जीव परमानों, जय पहिले अनन्त जिय जानो।। जय दूजे सासादन माहीं, तेरह कोड़ि जीव थिति आंही।। जय तीजे मिश्रित गुणथाने, चार जीव सु बावन कोड़ि प्रमाने। जय चौथे अविरति गुण जीवा, चार अधिक शतकोड़ि सदीवा।। जय जिय देशवि रत में शेषा, तेरह कोड़ि सातसौ हैं थिति वेशा। जय प्रमत्त षट शुन्य दोय वसु, पांच तीन नव पांच जीव लसु।। जय जय अपरमत्त गुन कोरं, लच्छ छयानवै सहस बहोरं। निन्यानवे एकशत तीना, एते मुनि तित रहहिं प्रवीना।। जय जय अष्टम में दुई धारा, आठ शतक सत्तानों सारा। उपशम में दुइसो निन्यानों, क्षपक मांहि तस् दने जानों।। जय इतने इतने हितकारी, नवें दशें जुग श्रेणी धारी। जय ग्यारे उपशम मग गामी, दौसे निन्यानौं अघगामी।। जय जय खीणमोह गुणथानों, मुनि शत पांच अधिक अट्ठानों। जय जय तेरह में अरहंता, जुग नभ पन वसु नव वसु तंता।। 1085
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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