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________________ सूत्र अर्घ्य (गीति का) जीव कर्ता भोगता है कर्म का बहु काल से। है निरूपण जास सारे सूत्र नाउँ भाल से।। पद है अठासी लक्ष जिसमें देव गणधर गाइया। पूजू मन वच काय हर्ष मन उमगाइया । ऊँ ह्रीं जीवस्य कर्तृत्वभोगतृत्वादि स्थापकं भूत चतुष्टयादि भवस्योत्थापकमष्टाशीति 8800000 लक्ष पद प्रमाण सूत्र कतांगांयऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।31॥ प्रथमानुयोग त्रेशट शलाके पुरुष संयम कथन जिसमें है सही। प्रथमानुयोगा नाम उसका प्रथित है इस जग मही।। सहस पंच सु पद उसी में देव जिनवर गाइया। पूजू हूँ जिन शास्त्रजी को हर्ष मन उमगाइया।। ऊँ ह्रीं त्रिषष्टि शलाका महापुरुष चरित्र कथक पंच सहस्र पद प्रमाण 5000 प्रथमानुयोगायऽयं निर्वपामीति स्वाहा।।32॥ अडिल्ल अरब एक अरु द्वादश कोटि सु मानिया। लक्ष तिरासी सह अठावन जानिया।। पंच महा पद उत्तम जिनवर भासिया। पूजू मन हर द्रव्य सु कलमष नाशिया।। ऊँ ह्रीं द्वादशांगानाम पंचाधिकाष्ट पंचाशत् सहस्र त्रयशीति लक्ष द्वादश कोटयैकारब 1128358005 पद प्रमाणेभ्योः पूर्णाध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥33॥ अथ चतुर्दश पूर्व अध्यं (भुजंग प्रयास) उत्पाद व्यय ध्रौव्य वस्तु है यक्तुं, उत्पद पूर्व महा शास्त्र उक्तं। श्लोक एक कोटि हे आप सुजाजे, महा भक्ति पूजू वसु द्रव्य साजे।। ऊँ ह्रीं वस्तुनामुत्पाद व्यय ध्रौव्यादिक कथमेक कोटि 10000000 पद प्रमाणमुत्पाद पूर्वांगायऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।34॥ 1031
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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