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________________ रवि आयु गति होय निरूपण है सही। सूर्य प्रज्ञप्ति नाम लहै इस ही मही ।। लक्ष पांच त्रय सहस महापद गण कहा । पूजूं मन वच काय हर्ष उर में लहा ऊँ ह्रीं श्री त्रिशत् सहस्रादिक पंचलक्ष 503000 पद प्रमाण सुर्यायुगति विभव प्ररूपिका सूर्य प्रज्ञप्तेऽयं निर्वपामीति स्वाहा॥27॥ वर्णन जम्बू दीप तनो जो करत हैं। नाम प्रज्ञप्ति जम्बू उसी का धरत है। तीनलाख अरु सहस पचीस सु पद लहा । पूजूं मन वच काय हर्ष उर में लहा।। ऊँ ह्रीं जम्बू दीप वर्णन कथिका पंच विंशति सहस्राधिक त्रिलक्ष 325000 पद प्रमाण जम्बूदीप प्रज्ञप्तेऽघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।28।। सागर द्वीप का वर्णन है जिस ग्रन्थ में। सागर द्वीप सु नाम लहै जिस पन्थ में || लक्ष बावने सहस छत्तीस सु पद महा। पूजूं मन वच काय हर्ष उर में लहा।। ऊँ ह्रीं द्वीप सागर स्वरूप निरूपिका षट् त्रिंशत सहस्राधिक द्वीपंचाशतलक्ष 5236000 पद प्रमाण द्वीप सागर प्रज्ञप्तेऽयं निर्वपामीति स्वाहा॥29॥ षट् द्रव्यों का कहैं सरस शुभ भाव से। व्याख्या प्रज्ञप्ति नाम वही शुभ चावसे।। लक्ष चुरासी सहस तीस षट् पद कहै। पूजूं मन वच काय हर्ष उर में लहै। पूजूं मन वच काय हर्ष उर लहा॥ ऊँ ह्रीं रूप्यरूप्यादि षट् द्रव्य स्वरूप निरूपिका षट् त्रिंशत्सहस्राधिक चतुरशीति लक्ष 8436000 पद प्रमाण व्याख्या प्रज्ञप्तेऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥ 30 ॥ एक कोटि इक अस्सी लक्ष सु जानिए। सहस पांच सु श्लोक सर्वज मानिए। चन्द्र प्रज्ञप्ति आदि सु पांचों में कहा। पूजूं मन वच काय हर्ष उर में लहा ऊँ ह्रीं पंच प्रज्ञप्ति सम्बन्धि पंचाशत सहस्राधि क एकाशीति लक्षैक कोटि 18150000 पद प्रमाण पंच प्रज्ञप्तिपूर्णाऽघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।। 1030
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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