SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 537
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इर्यापथ-साधन भूस्पर्शन करके मंत्र-उच्चार। कर कृति-कर्म करके सामयिक की सुप्रतिज्ञा सार।। भूस्पर्शन कर शुद्ध भाव से स्तुति चौबीस-जिनराज। पढ़े चार-अंगुल पदांतर एक-चित्त हितकाज।। ठाड़ा कार्याकर्म धार कर श्री लघु-चैत्य-सुभक्ति। कर नति-चहुँ आवर्त रु बारह-युत आलोचन-भक्ति।। क्षय करे पंच-गुरुभक्ति काय-उत्सर्ग अंचली-युक्त। तदनन्तर सु समाधि-भक्ति-युत पढ़े आसही सुक्त।। यो विधिपूर्वक करे वंदना जो त्रिकाल जिनदेव। ताके पाप घटे प्रगटे शुभ-गुण-गण को नहीं छेव।। श्री हरिवंश क्रिया-कलाप को सोधि लिखी अनुसार। स्वानुभूत-प्रत्यक्ष फलप्रद निरारंभ सुविचार।। ऋषियों ने बरणी श्री मुख से परम्परा शुभ लीन। दीपचन्द श्री सुव्रतजिनकी रहे भक्ति में लीन।। घत्ता श्री सुव्रतदेवं सुरकृतसेवं आशरम्य -सुपट्टनगं। योगत्रय-शुद्धः मति-प्रतिबुद्धः ध्यायति दीपेन्दुः जिनप।। ऊँ ह्रीं श्रीआशरम्यपट्टणपुरस्थ-श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय जयमाला पूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा।।9।। ॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥ 537
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy