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________________ सत्य की निष्ठा जहाँ है सिद्धि वचनों की वहाँ है। घाति-कर्म नशा दिया है आत्मबल प्रकटित किया है।। बाह्य-साधन की नहीं अब आवश्यकता क्षणिक सब। यही वांछा धारि मन में धूप खेवें अगनि में अब।। ऊँ ह्रीं श्रीआशरम्यपट्टणपुरस्थ-श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।7। संसार-सुख-फल चाह, नित देत दुःख-अथाह। इस बिना जिनराज शिव देह फल उच्छाह।। ॐ ह्रीं श्रीआशरम्यपट्टप थजिनेन्द्राय फलं निर्वपामीति स्वाहा।81 जल गंधाक्षत पुष्प से पूजों प्रभु पद-कंजा चरु सुदीप धूपादि फल अग्र धरूँ अघ-भंज।। ॐ ह्रीं श्रीआशरम्यपट्टणपुरस्थ-श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अयं निर्वपामीति स्वाहा। पंचकल्याणक ॐ ह्रीं श्रीआशरम्यपट्टणपुरस्थ-श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय गर्भ-जन्म-तप-ज्ञान-निर्वाण पंचकल्याणक प्राप्ताय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।। जयमाला दोहा श्री सुव्रत जिनराज की महिमा कही न जाय। तदपि किमपि युति वरणऊँ भक्ति-सुयोग-वसाय।। जो तेरी नित करे वन्दना आगम-भक्ति प्रमान। वह मन-वांछित सब सुख पावै करे अशुभ विधि हान।। देखि जिनालय होय मुदित, धरे भक्ति का ठाठ। बाहरि मध्य मूल बेदी में निःसही पद-त्रय पाठ।। मूल बेदी के तीन प्रदक्षिण दे रत्नत्रय सार। दर्शन पाठ पढ़े जो मुक्ता-सुक्ति समुद्राधार।। 536
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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